संस्थान की प्रष्ठभूमि एवं अधिदेष –
क्षेत्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान (आर.ए.आर.आई) भारत सरकार के आयुश मंत्रालय के अन्तर्गत केन्द्रीय आयुर्वेदियी विज्ञान अनुसंधान परिशद् (सी.सी.आर.ए.एस) का एक संस्थान जो पष्चिमोत्तर हिमालयी क्षेत्रों पायी जाने वाली औशधि वनस्पतियें के षोध कार्य हेतु अग्रणी संस्थान में है, जिसका मुख्य उद्देश्य पष्चिमोत्तर हिमालयी क्षेत्रों में विस्तारित औशधि पादपों की उपलब्धता का आंकलन करना एवं अनुसंधान के क्षेत्रों में औशधि पादपों एवं केसर के कृशिकरण की तकनीकों का विकास कर उनका उपयोग करना है । प्रारम्भ में यह संस्थान औशधीय पादपों के सर्वेक्षण हेतु प्राप्त अनुदान के तहत 1964 में स्थापित किया गया। वर्तमान में इस सस्थान के दो हर्बल गार्डन जो मुख्यतः रानीखेत अल्मोडा एवं चम्बा टिहरी गढवाल उतराखण्ड में स्थापित है एवं जिनमें प्रदर्षनार्थ सूक्ष्म रूप में विलुप्त प्रायः औशधीय पादपों एवं केसर का कृशिकरण किया जा रहा है । सस्थान का पादपालय जो लगभग 62935 पादप प्रतिदर्षो से युक्त एवं ‘आरकेटी‘ नाम से एक्रोनिम है। सस्थान में 624 कच्ची आयुवेदीय औशध प्रतिदर्षो युक्त संग्रहालय है । उपरोक्त पादप प्रतिदर्ष एव कच्ची औशध प्रतिदर्ष क्रमषः पष्चिमोत्तर हिमालयी क्षेत्रों से संग्रहित कर संरक्षित किये गये है। संस्थान का एक कस्तूरा मृग फार्म भी है जो जिला बागेष्वर के महरूरी क्षेत्र में है । संस्थान द्वारा 5 मई 2015 से क्षेत्रीय जनता के स्वास्थ्य हिताय एक आयुर्वेदिक वाहय रोगी चिकित्सालय का प्रारम्भ भी किया गया है ।
गतिविधियां एवं उपलब्धियां -
A. लोकवानस्पतिक चिकित्सा सर्वेक्षण -
1. संस्थान द्वारा पष्चिमोत्तर हिमालयी क्षेत्रों में तराई से उच्च हिमालयी क्षेत्र जो पश्चिमी हिमालय का 25 प्रतिशत भूभाग एवं लगभग 54000 वर्ग कि0मी0 में फैला है एवं जो 42 वन प्रभागों के अन्र्तगत आते है में वनस्पति सर्वेक्षण कार्य किये गये है।
2. संस्थान के पादपालय में लगभग 62935 पादप प्रतिदर्ष जो क्रमषः 218 कुलों, 1410 जातियों एवं 3670 प्रजातियों तथा जो आर्वतबीजी, अनार्वतबीजी एवं फर्न वर्गो से सम्बधित है जिनका संग्रहण क्रमषः उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेष, जम्मू एवं कष्मीर एवं हिमाचल प्रदेष से वर्श 1964 से लगातार किया जा रहा है। जिनका प्रतिदर्षनार्थ संरक्षित किये गये है। संस्थान का पादपालय न्यूर्याक वनस्पतिक गार्डन से आर. के. टी. नाम से जुडा हुआ है ।
3. संस्थान द्वारा क्रमषः उतराखण्ड, उत्तर प्रदेष, जम्मू एवं कष्मीर एवं हिमाचल प्रदेष के पादप एवं बाजार सर्वेक्षण कार्यक्रमों के दौरान लगभग 624 कच्ची औशधीय पादपों के प्रतिदर्षो को संरक्षित किया गया है ।
4. वर्श 1964 से लगभग 550 औशध पादप सम्बधित लोकोक्तियों का संग्रहण लोकवानस्पतिक चिकित्सा सर्वेक्षण कार्यक्रमों के दौरान किया गया है।
5. भारतीय जिंसिंग पेनैक्स सूडोजैनसिंग वाल एवं आर्किड डिप्लोमैरिस हिरसूटा लिन्डल को प्रथम बार पष्चिमी हिमालयी क्षेत्रों से लोकवानस्पतिक चिकित्सा सर्वेक्षण दौरों के रिर्काड किया गया है।
6. दो पादप प्रजातियों वालिचिया डेन्सीफलोरा मार्ट एवं फाइरेनियम प्लेसैन्टेरियम नीज का संग्रहण लगभग एक षताब्दी बाद किया गया है ।
B.औशधीय पादप एवं केसर का कृशिकरण -
हिमालयी क्षेत्रों की विलुप्तप्रायः औशधीय पादपों तथा केसर का कृशिकरण एवं संरक्षण संस्थान द्वारा दो हर्बल गार्डनों में किया जाता है:
1. वनौशधि उद्यान रानीखेत: 1.आइ.एस.एम सर्वेक्षण कार्यक्रम के तहत वर्श 1964 में उक्त उघान को औशधीय पादपों के कृशिकरण एवं संरक्षण हेतु प्रारम्भ किया गया। जो बाद में आर.ए.आर.आई0. को दे दिया गया, उक्त उघान 29039‘ उ0 तथा 79024‘ पू0 देषान्तर के अन्र्तगत 1654 मी. की उचांई पर स्थित है जो क्रमषः देवदार, चीड, काफल, बुरांष,बांज वृक्षों एवं किल्मोडा, हिसालु एवं घिघारू के झाडीयों से आछंदित है।
2. उक्त उघान 3 एकड भूभाग में फैला है जिसमे से लगभग 2.5 एकड भूभाग पर औशधीय एवं केसर का कृशिकरण किया जाता है। उक्त कृशिकरण भूभाग कुमायू कौपरेटिव फेडरेषन, अल्मोडा से मासिक किराया के आधार पर लिया गया है।
3. वर्तमान में उघान में 157 औशधीय पादपों का कृशिकरण एवं संरक्षण किया जाता है ।
4. केसर का रानीखेत क्षेत्र में आवास न होने के कारण उघान क्षेत्र में सफल कृशिकरण किया जा रहा हैं।
2. वनौशधि वाटिका चम्बा टिहरी गढवाल:
1. उक्त उघान 1750 मी0 की उचाई पर्र िस्थत है, जिसे आइ.एस.एम द्वारा लीज पर लिया गया था परन्तु बाद में खरीद लिया गया उक्त वाटिका में 2एकड भूभाग पर केसर एवं वनौशधि पादपों का कृशिकरण किया जा रहा है।
2. वर्तमान में 68 सुगंधीय एव औशधीय पादपों का कृशिकरण एवं संरक्षण किया जा रहा है।
3. केसर का आवास न होने के कारण केसर का कृशिकरण भी सफलता पूर्वक किया जा रहा है।
C. अनुसंधान केन्द्र, महरूरी बागेष्वर -
1. कस्तूरा मगृ प्रजनन एवं बिना मृग को नुकसान पहुचे कस्तूरी का विदोहन हेतु उक्त कस्तूरा मृग अनुसंधान केन्द्र का प्रारम्भ 2 एकड भूभाग पर संस्थान द्वारा महरूरी, बागेष्वर उतराखण्ड में 2200 मी. उचाई पर वर्श 1972 में किया गया ।
2. वर्तमान में 16 कस्तूरा मृग 7नर एवं 9 मादा मृगों का आहार, व्यवहार एवं रोगों से रोकथाम हेतु अघ्ध्यन केन्द्र के कर्मचारीयों द्वारा सुचारू रूप में किया जा रहा है ।
D. नैदानिक षोध -
क्षेत्रीय जनता के विभिन्न रोगो के आयुर्वेदिक उपचार हेतु एक वाहय रोगी चिकित्सालय का प्रारम्भ संस्थान के परिसर में 5 मई 2015 से कर दिया गया है ।
E. सुचारू परियोजनाएं -
1. लोकवानस्पतिक चिकित्सा सर्वेक्षण.
2. औशधीय पादप एवं केसर कृशिकरण.
3. कस्तूरा मृग प्रजनन.
4. वहिंरग अनुभाग.
सेमीनार -
मेडिसिनल प्लांटस आफ हिमालया: पोटैनसियल एडं प्रोसपैक्ट विशय पर सितम्बर 2010 में एक राष्ट्रीय संगोष्टी का आयोजन सफलता पूर्वक किया गया ।
आयुर्वेद पर राष्ट्रीय अभियान -
उतराखण्ड में आयुवेद एवं वृद्वावस्था विशय पर एक राष्ट्रीय अभियान का सफल संचालन वर्श 2010-11 में किया गया ।
आरोग्य मेला 2015-16 -
परिषद् के पत्रांक 48-30/2015-सी.सी.आर.ए.एस/एडमीन./2497 दि. 27/1/2016 एवं दिशानिर्देशन में संस्थान द्वारा दिनांक 05 -08 फरवरी 2016 तक परेड ग्राउड देहरादून में आयोजित राष्ट्रीय आरोग्य मेले में प्रतिभाग किया गया।
षोध प्रकाशन -
संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा प्रारम्भ से लगभग 600 षोधपत्रों का प्रकाषन राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय पत्रिकाओं में किया गया है । 3 पुस्तकों एवं 4 मोनोग्राफ भी संस्थान द्वारा प्रकाषित किये गये हैं।
सम्पर्क विवरण -
डॉ. ओम प्रकाश प्रभारी सहायक निदेशक
क्षेत्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान (आर.ए.आर.आइ.)
थापला गनियाघोली रानीखेत
अल्मोडा उत्तराखण्ड
पिन -263645
फोन - 05966 - 264264
फैक्स - 05966 - 264265
ईमेल -rrihf.tarikhet@gmail.com
rrihf-tarikhet@gov.in