संक्षिप्त परिचयः
इस संस्थान को वर्ष मई 1971 में औषधीय पौधों का सर्वेक्षण और नैदानिक अनुसंधान की एक यूनिट के साथ आरंभ किया गया था और 1979 में क्षेत्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान के रुप में इसे उन्नत किया गया। इसके अलावा, वर्ष 2009 में पूर्वोत्तर भारत आयुर्वेद अनुसधान संस्थान के नाम से इस संस्थान का नया नामकरण किया गया। तत्पश्चात इसी वर्ष क्षेत्रीय आयुर्वेदीय जठरांत्र विकार अनुसंधान संस्थान के नाम से संस्थान का पूनः नामकरण किया गया। संस्थान का स्वयं की जमीन और भवन है।
अधिदेशः
1. चर्म विकार और जठरांत्र विकार पर नैदानिक अनुसंधान केंद्रित है।
2. चिकित्सा-प्रजाति वानस्पतिक सर्वेक्षण।
अन्य गतिविधियाँ
1. बहिरंग विभाग के द्वारा स्वास्थ्य रक्षा सेवा।
2. जन-जातीय स्वास्थ्य रक्षा अनुसंधान परियोजना (टीएसपी)।
3. वृद्धावस्था स्वास्थ्य रक्षा के लिए विशेष निदानशालाएं।
4. पंचकर्म चिकित्सा।
5. स्वास्थ्य रक्षण कार्यक्रम, एससीएसपी के अधीन आयुर्वेद सचल स्वास्थ्य रक्षा कार्यक्रम आदि जैसे आउटरीच गतिविधियां।
गतिविधियाँ:
उपर्युक्त गतिविधियों के अलावा यह संस्थान विभिन्न प्रकार के ईंट्रा मोरेल क्लिनीकल रिसर्च प्रोजेक्ट(आईएमसीआर) पर कार्य किया गया, ईंट्रा मोरेल क्लिनीकल रिसर्च प्रोजेक्ट(आईएमसीआर) के अंतर्गत चयनित रोग है जैसे कि-
1. मधुमेह के नैदानिक मुल्यांकन के लिए निशा आमलकी और चंद्रप्रभा वटी औषधीयों का प्रयोग किया गया।
2. आमवात के नैदायनिक मुल्यांकन हेतु वातारी गुग्गलु, हिंगवास्टक चूर्ण और बृहत सैंधावादी तेल का प्रयोग किया गया।
3. संधिबात के प्रक्रिया में नैदानिक मुल्यांकन के लिए योगराज गुग्गलु, गंधर्वाहस्ता तेल और धनवंतरी तेल का प्रयोग किया गया।
4. असम राज्य में लोक चिकित्सकों और लोक दावों का प्रलेखन और डाटा संचयन का विकास।
5. आयुर्वेद प्रणाली में औषधीय पौधों के विपरीत में इस्तेमाल किए गए प्रतिनिधि द्रब्यों के साथ-साथ अपमिश्रक कच्चे औषधीय संग्रहालय का विकास।
6. पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय समाज के प्रजनन और स्वास्थ्य रक्षण के लिए अंतर्निहित औषधीय पौधों के परस्पर समाजिक और कल्चरल अध्ययन में वानस्पतिक प्रजाति अनुसंधान के आंकड़ों का संचयन।
7. आगे, यह संस्थान मेदोरोग, मुत्रस्मारी, ग्रहणी, विषम ज्वर आदि पर नैदानिक परीक्षण कार्यक्रम संचालित किए गए।
8. चिकित्सा पाण्डुलिपि परियोजना(एमएमपी) पर साहित्यिक अनुसंधान।
उपलब्धियाँ:
Ø दिनांक 29 जून 2016 तक इस संस्थान के बहिरंग विभाग के द्वारा कुल एक लाख बीस हजार से भी ज्यादा रोगियों को चिकित्सा राहत सेवा प्रदान किया गया।
Ø दिनांक 29 जून 2016 तक जन-जातीय स्वास्थ्य रक्षा अनुसंधान परियोजना के अधीन अब-तक कुल 62 ग्रामों के साथ 70,866 आबादियों का सर्वेक्षण किया गया है।
Ø दिनांक 29 जून 2016 तक स्वास्थ्य रक्षण कार्यक्रम (दिसंबर, 2015 से आरंभ) के अधीन अब-तक कुल 05 ग्रामों (02 ग्राम पूर्ण और 03 जारी है।) के साथ 5,470 आबादियों का सर्वेक्षण किया गया है।
Ø दिनांक 29 जून 2016 तक अनुसूचित जाति उप योजना (दिसंबर, 2015 से आरंभ) के अधीन अब-तक कुल 05 ग्रामों (03 ग्राम पूर्ण और 02 जारी है।) के साथ 2,626 आबादियों का सर्वेक्षण किया गया है।
Ø दिनांक 29 जून 2016 तक औषधीय पौधे कार्यक्रम का सर्वेक्षण के अधीन 6,040 से भी अधीक औषधीय पौधों के नमुनों को हरबेरियम में और 350 संग्रहालय में नमुनों को संरक्षित किया गया।
Ø दिनांक 29 जून 2016 तक चिकित्सा-प्रजाति वानस्पतिक सर्वेक्षण कार्यक्रम और जन-जातीय स्वास्थ्य रक्षा अनुसंधान परियोजना के अधीन कुल 500 से भी अधीक लोक-दावों का संग्रहण किया गया और निर्धारित प्रारूप में भर दिया गया।
Ø दिनांक 29 जून 2016 तक इस संस्थान ने 50 से भी अधिक शोध पत्रों और जन-जातीय स्वास्थ्य रक्षा अनुसंधान परियोजना पर एक मोनोग्राफ का प्रकाशन किया।
Ø दिनांक 29 जून 2016 तक पूर्वोत्तर भारत के 05 राज्यों के कई वन प्रभागों में सर्वेक्षण किया गया।
संपर्क विवरणः
डॉ. बी. के. भराली, प्रभारी सहायक निदेशक (वै.-4)
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय जठरांत्र विकार अनुसंधान संस्थान,
बोरसोजय, बेलतला, गुवाहाटी-781028
दूरभाष सं. 0361-2132180
मोबाइल सं. +91-9864072567
फैक्स सं. 0361-2303714
ई-मेल पताः neiari-guwahati@gov.in / neiari.guwahati@gmail.com.