परिषद् का उद्देश्य

केन्द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद् (सीसीआरएएस), आयुष मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्‍त शासी निकाय है, जो भारत में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में वैज्ञानिक विधि से शोध कार्य प्रतिपादित करने, उसमें समन्वय स्थापित करने, सूत्रबद्ध करने, उसका विकास करने एवं समुन्नत करने हेतु शीर्ष राष्ट्रीय निकाय है। परिषद् अपने कार्यों का निष्पादन सम्पूर्ण भारत में स्थित अपने 30 संस्थानों/केंद्रों/एककों के माध्यम से तथा विभिन्न विश्वविद्यालयों, अस्पतालों तथा संस्थानों के सहयोगात्मक अध्ययन से भी निष्पादित करती है। परिषद् की अनुसंधानात्मक गतिविधियों में औषधीय पादप अनुसंधान (औषध प्रजाति वानस्पतिक सर्वेक्षण भेषजगुण अभिज्ञानीय, पादप ऊतक संवर्धन) औषधि मानकीकरण, भेषजगुण विज्ञानीय अनुसंधान, आदिवासी स्वास्थ्य रक्षा अनुसंधान, साहित्यिक अनुसंधान एवं प्रलेखीकरण, आदिवासी स्वास्थ्य रक्षा कार्यक्रम सम्मिलित हैं।

केन्‍द्रीय परिषद् की स्‍थापना का उद्देश्‍य:

1. आयुर्वेदीय विज्ञान में वैज्ञानिक आधार पर अनुसंधान पद्धति एवं उद्देश्यों का निरुपण करना।

2. आयुर्वेदीय विज्ञान में किसी भी अनुसंधान या अन्य कार्यक्रमों को प्रारम्भ करना।

3. अनुसंधान कार्य में सहायता करना एवं उसका निष्पादन करना, रोगों के कारणों एवं उसके रोकथाम हेतु ज्ञान एवं प्रयोगात्मक मानदंडो का प्रचार-प्रसार करना।

4. आयुर्वेदीय विज्ञान के मौलिक एवं व्यावहारिक पहलुओं का वैज्ञानिक अनुसंधान प्रारम्भ करना, विकास समन्वय करना एवं सहायता देना तथा रोगों के कारणों और उनसे बचाव एवं उपचार के अध्ययन के लिए अनुसंधान संस्थाओं को उन्नत करना एवं सहायता प्रदान करना।

5. केन्द्रीय परिषद् के उद्देश्यों के विकास हेतु अनुसंधान को वित्त प्रदान करना।

6. केन्द्रीय परिषद् के समान उद्देश्यों में रूचि रखने वाले संस्थाओं, संघों एवं समितियों के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान करना और पूर्वी देशों के विशेषकर भारत में रोगों के अघ्ययनों एवं परिणामों का आदान-प्रदान करना।

7. केन्द्रीय परिषद् के उद्देश्यों के प्रोत्साहन हेतु प्रपत्रों, पोस्टर्स, पुस्तिका, सामयिक पत्रिका एवं पुस्तकों को बनाना, मुद्रण करना, प्रकाशन एवं प्रदर्शन करना तथा ऐसी साहित्यिक गतिविधियों में योगदान करना।

8. केन्द्रीय परिषद् के उद्देश्यों के प्रोत्साहन में निधि के लिए आवेदन बनाना, अपील जारी करना तथा उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ती के लिए उपहार, दान, नकद अंशदान, सुरक्षित राशि एवं चल या अचल संपत्ति को स्वीकार करना।

9. केन्द्रीय परिषद् से संबंधित किसी भी चल या अचल संपत्ति को गिरवी रखकर अथवा जमानत या वचन देकर अथवा अन्य किसी भी प्रकार से सुरक्षित राशि के साथ अथवा सुरक्षित ऋण शुल्क पर ऋण लेना या धन जुटाना।

10. केन्द्रीय परिषद् के उस धन का निवेश एवं निधि का संचालन करना जो परिषद् को तुरन्त आवश्यक नहीं है, क्योंकि ये केंद्रीय परिषद् की शासी निकाय द्वारा समय-समय पर निर्धारण करके किया जा सकता है। 

11. केन्द्रीय परिषद् हेतु निधियों की अनुमति भारत सरकार के पास सुरक्षित है।

12. केन्द्रीय परिषद् के उद्देश्यों के लिए किसी चल अथवा अचल संपत्ति को आवश्यक अथवा सुविधा के अनुसार अस्थाई या स्थाई रूप से अधिग्रहण करना और रखना।

13. केन्द्रीय परिषद् के चल अचल संपत्तियों को बेचना, किराये पर देना, गिरवी रखना, और बदलना तथा अचल संपत्ति के स्थानान्तरण के संबंध में केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति लेकर स्थानान्तरित करना।

14. केन्द्रीय परिषद् के प्रयोजन के लिए किसी भवन को खरीदना, निर्माण करना, रख-रखाव, अथवा आवश्यक्ता एवं सुविधानुसार बदलाव लाना।

15. जहां भी वांछनीय हो, वहीँ किसी भी स्थायी निधि के दान हेतु या ट्रस्ट निधि के दान के प्रबंधन का कार्य करना।

16. केन्द्रीय परिषद् के उद्देश्यों के प्रोत्साहन हेतु यात्रावृत्त समेत पुरस्कार एवं छात्रवृति अनुदान देना।

17. सोसाइटी के अंर्तगत प्रशासनिक, तकनीकी अनुसचिवीय एवं अन्य पदों का सृजन करना और सोसाइटी के नियमों एवं विनियमों के तहत नियुक्ति करना।

18. परिषद् के कर्मचारियों एवं उनके परिवार के सदस्यों के लाभार्थ भविष्य निधि अथवा पेंशन निधि स्थापित करना।

19. इसी प्रकार अन्य वैधानिक कार्यों को अकेले अथवा ऐसे किसी संस्था के संयोजन के साथ करना जिन्हें केंद्रीय परिषद् आवश्यक समझती हो अथवा उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ती के लिए करना चाहती हो।

20. अनुसंधान एवं विकास परामर्श परियोजनाओं को लेना तथा औषधियों पर पेटेंट को स्थानान्तरित करना एवं उद्योगों को देने की प्रक्रिया करना।

21. सार्वजनिक या निजी क्षेत्र में उद्योगों द्वारा प्रायोजित अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को लेना।

22. अंतर्राष्ट्रीय एवं अंतर संस्थागत सहयोग को लेना। 

23. अनुसंधान के परिणामों का उपयोग करना तथा इन अनुसंधानों में सहयोग देने वाले को रॉयल्टी /परामर्श शुल्क के भाग का भुगतान करना।

24. अन्य देशों की वैज्ञानिक संस्थाओं के साथ वैज्ञानिकों के आदान-प्रदान, अध्ययन यात्रा, विशिष्ट क्षेत्रों में प्रशिक्षण संयुक्त परियोजनाओं का संचालन आदि के प्रबंधन में शामिल होना।

25. परिषद् की गतिविधियों को सुसंगत बनाने के संबंध में सरकारी/निजी एजेन्सी को तकनीकी सहायता प्रदान करना।

26. अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु औषध पादप बोर्ड, भारत सरकार की सहायता करना।

27. अनुसंधान एवं विकास की गतिविधियों के पर्यवेक्षण के लिए स्थानीय क्षेत्रों के ख्याति प्राप्त वैज्ञानिकों/चिकित्सकों की प्रबंध लघु समिति गठित करना एवं परिषद् के सभी केन्द्रीय एवं अनुसंधान संस्थानों की गतिविधियों में सुधार लाने के लिए उपचारात्मक मानदंडों हेतु सुझाव देना।